पुत्रदा एकादशी का परिचय
हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण व्रत है पुत्रदा एकादशी व्रत, यह सावन महीने में शुक्ल पक्ष के एकादशी तिथि को मनाया जाता है।
यह बेहद ही पवित्र दिन माना जाता है जो कि भगवान विष्णु को समर्पित है।
इस व्रत को रखने से यह माना जाता है की संतान की प्राप्ति होती है और उन संबंधित समस्याओं से भी निवारण मिलता है।
इस व्रत को रखने से,शांति, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है आशा माना जाता है।
आज के दिन यानी 5 अगस्त को देशभर के भक्त इस एकादशी व्रत को रख रहे हैं और इसके लाभ उठते हैं।
क्या है इस एकादशी व्रत का महत्व- Ekadashi vrat
पात्रता एकादशी का व्रत उन लोगों के लिए बेहद ही महत्वपूर्ण है जिनको संतान की प्राप्ति में परेशानी हो रही है या वह अपने बच्चों की भविष्य के कामना करते हैं और चिंतित है।
आशा माना जाता है कि अगर पूरी श्रद्धा से इस व्रत को निभाया जाए तो पिछले जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और संतान संबंधी बढ़ाएं भी दूर हो जाती है।
इस व्रत को रखने के लिए प्रार्थना और रात भर के जागरण किया जाता है जो कि भगवान विष्णु को समर्पित होता है।
व्रत के नियम और अवधि
यह व्रत दिन शुरू होने से शुरू हो जाताहै, स्नान करके भक्तिभगवान विष्णु की पूजा करते हैं।
फूल धूप और अनुभव लगाया जाता है। बिना पानी और भोजन के लिए व्रत रखा जाता है और केवल दूध या फल खाकर पूरे दिनबिताया जाता है।
भक्ति विष्णु मित्रों का जाप करते हैं और रात में जागरण करते हुए भक्ति भजनों का गाना गाते हैं। दान का महत्व भी इस दिन काफी ज्यादा होता है जिसमें वस्त्र भोजन या अन्य चीजों का दान भी करके पुण्य मिलता है.
पुत्रदा एकादशी की कथा- Ekadashi Vrat Katha
पुत्रदा एकादशी से जुड़ी पारंपरिक कथा महिष्मति नगर के राजा महिजीत के इर्द-गिर्द घूमती है, जो इस व्रत की चमत्कारी शक्ति को दर्शाती है। नीचे इस कथा को एक नये और रोचक तरीके से प्रस्तुत किया गया है:
द्वापर युग में, महिष्मति नगर में राजा महिजीत का शासन था। वह एक धर्मी और दयालु राजा थे, जिनके पास एक समृद्ध राज्य था। लेकिन, उनके और उनकी रानी के कोई संतान न होने के कारण वे गहरे दुख में थे। संतान के अभाव में उनके राजसी कर्तव्य उन्हें अधूरे लगते थे। उनका मानना था कि बिना पुत्र के धरती और स्वर्ग दोनों ही दुखदायी हैं। संतान प्राप्ति के लिए राजा ने कई यज्ञ, हवन और दान-पुण्य किए, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। जैसे-जैसे वृद्धावस्था नजदीक आ रही थी, उनका दुख बढ़ता गया। अंततः, उन्होंने अपनी प्रजा और विद्वानों को बुलाकर कहा, “मैंने इस जन्म में कोई पाप नहीं किया। मेरे खजाने में अन्याय से कमाया हुआ धन नहीं है। मैंने कभी मंदिरों, गृहस्थों या ब्राह्मणों का धन नहीं छीना। मैं अपनी प्रजा का पुत्र की तरह पालन करता हूं, संन्यासियों को दान देता हूं, और अपराधियों को न्याय के अनुसार दंड देता हूं। सज्जनों की हमेशा पूजा करता हूं। फिर भी, मुझे कोई पुत्र नहीं है। इस कारण मैं बहुत दुखी हूं।”
राजा की इस समस्या के समाधान के लिए उनके मंत्रियों ने जंगल में ऋषियों और मुनियों की खोज शुरू की। एक शांत आश्रम में उन्हें एक महान तपस्वी मिले, जिनका नाम लोमेश मुनि था। लोमेश मुनि की आयु इतनी लंबी थी कि एक कल्प बीतने पर उनके शरीर से एक रोम गिरता था। मंत्रियों ने मुनि को प्रणाम किया और राजा की व्यथा सुनाई। उन्होंने कहा, “हमें विश्वास है कि आपके दर्शन से हमारा संकट अवश्य दूर होगा। कृपया राजा को पुत्र प्राप्ति का उपाय बताएं।” यह सुनकर लोमेश मुनि ने अपनी आंखें बंद कीं और राजा के पिछले जन्म का पूरा वृत्तांत जान लिया।
मुनि ने बताया कि राजा महिजीत पिछले जन्म में एक निर्धन वैश्य थे। गरीबी के कारण उन्होंने कई गलत कर्म किए। एक बार ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को, जब वे दो दिन से भूखे थे, वे एक जलाशय पर पानी पीने गए। वहां कुछ गायें पानी पी रही थीं। उन्होंने गायों को पानी पीने से रोक दिया और स्वयं पानी पिया। इस पाप के कारण वे इस जन्म में निःसंतान रह गए। हालांकि, उस दिन अनजाने में एकादशी का व्रत रखने के कारण वे राजा बने, लेकिन गायों को पानी से हटाने के पाप के कारण वे पुत्रहीन रहकर दुख भोग रहे हैं।
मंत्रियों ने पूछा, “हे मुनि, कृपया कोई उपाय बताएं जिससे राजा का यह पाप नष्ट हो और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हो।” लोमेश मुनि ने कहा, “श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। इस दिन पूरे विधि-विधान से व्रत करें और रात में जागरण करें। इससे राजा को अवश्य पुत्र प्राप्त होगा।” मंत्रियों ने यह संदेश राजा को दिया। राजा और रानी ने पूरी श्रद्धा से पुत्रदा एकादशी का व्रत किया, भगवान विष्णु की पूजा की और रात में जागरण किया। अगले दिन, द्वादशी को, उनके व्रत का फल मिला। रानी गर्भवती हुईं और समय आने पर एक तेजस्वी पुत्र का जन्म हुआ, जिसने पूरे राज्य में खुशी ला दी।
इसलिए श्रावण मास की इस एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। संतान सुख की इच्छा रखने वालों को यह व्रत अवश्य करना चाहिए, क्योंकि यह सभी पापों को नष्ट करता है और मोक्ष की प्राप्ति कराता है।